उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 3 किमी की दूरी पर माणा गांव स्थित है। माणा गांव के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है। माणा गांव को श्रापमुक्त गांव भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां एक बार आने पर सभी पापों से मुक्ती मिल जाती है। माणा गांव समुद्र तल से 10000 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। माणा गांव अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ कई अन्य कारणों की वजह से भी प्रसिद्ध है। माणा गांव भारत- तिब्बत सीमा से लगा हुआ है, इस गांव का नाम भगवान शिव के भक्त मणिभद्र देव के नाम पर है। बताया जाता है इस गांव पर भगवान शिव की ऐसी महिमा है कि यहां जो भी आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है।
पौराणिक कथा…..
पौराणिक कथा के अनुसार, यहां पर माणिक शाह नाम का व्यापारी रहता था जो भगवान शिव का भक्त था। बताया जाता है कि एक बार माणिक शाह व्यापार के सिलसिले में कहीं जा रहा था, रास्ते में जाते हुए लुटेरों ने उसका सिर काट कर उसकी हत्या कर दी। इसके बावजूद भी उसकी गर्दन शिव का जाप कर रही थी। माणिक शाह की श्रद्धा देख कर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उसके सिर पर वराह का सिर लगा दिया। भगवान शिव से उसे वरदान दिया कि जो भी मानना गांव आएगा उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अमीर हो जाएगा। इसके बाद से ही यहां पर मणिभद्र की पूजा होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास के कहने पर इसी गांव में महाभारत की रचना की थी। यही नहीं, महरिशी वेद व्यास ने यहीं पर वेद और पुराण की भी रचना की थी। बताया जाता है कि महाभारत युद्ध खत्म होने पर पांडव इसी गांव से होकर स्वर्ग जाने वाली स्वर्गारोहिणी सीढ़ी तक गए थे।
माणा गांव के दर्शनीय स्थल……
गणेश गुफा….
माणा गांव से कुछ ऊपर चढ़ कर सबसे पहली नजर आती है गणेश गुफा। गणेश गुफा के बारे में कहा जाता है कि जब गणेश जी वेदों की रचना कर रहे थे, तो सरस्वती नदी अपने पूरे वेग से बहने के कारण शोर कर रही थी। जिसके बाद गणेश जी ने सरस्वती जी से कहा कि शोर कम करें, मेरे कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है। लेकिन सरस्वती जी ने गणेश जी बात नहीं मानी। इस बात से नाराज होकर गणेश जी उन्हें श्राप दिया कि इससे आगे वह किसी को भी नहीं दिखाई देगी। इस कारण सरस्वती नदी यहीं पर दिखती है, कुछ दूरी पर जाकर यह अलकनंदा में मिल जाती है। इस जगह के बारे में यह भी कहा जाता है कि पांडवों द्वारा रास्ता मांगने पर जब सरस्वती जी ने रास्ता नहीं दिया तो महाबली भीम ने नाराज होकर गदा से भूमि पर प्रहार किया जिससे यह नदी पाताल लोक चली गई।
व्यास गुफा…..
गणेश गुफा के बाद नजर आती है व्यास गुफा जो गणेश गुफा से बड़ी है। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बांटा था। व्यास गुफा और गणेश गुफा यहां होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यास जी ने बोला और गणेश जी ने लिखा था। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नजर एक छोटी सी शिला पर पड़ती है, इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है।
भीम पुल……..
सरस्वती नदी के ऊपर भीम पुल है। भीम पुल के बारे में कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग को जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर सरस्वती नदी से जाने के लिए रास्ता मांगा परन्तु उन्होंने मार्ग नहीं दिया। ऐसे में महाबली भीम ने दो बड़ी शिलाएं उठाकर इसके ऊपर रख दी, जिससे इस पुल का निर्माण हुआ। जिसके कारण इसका नाम भीम पुल पड़ा। भीमपुल से जुड़ी एक रोचक लोक मान्यता यह भी है कि जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे तब वहां दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। जिसके बाद महाबली भीम ने भारी भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और उसे खाई को पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। स्थानीय लोगों ने यहां भीम का मंदिर भी बना रखा है। यह पुल आज भी वहीं मौजूद है।
नीलकंठ चोटी……
नीलकंठ चोटी को गढ़वाल की रानी के नाम से भी जाना जाता है। नीलकंठ चोटी समुद्र तल से 6597 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस चोटी से यहां आने वाले पर्यटक बद्रीनाथ धाम को निहार सकते हैं।
माता मूर्ति मंदिर……
बद्रीनाथ धाम से कुछ दूरी पर माता मूर्ति मंदिर स्थित है। माता मूर्ति मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि माता मूर्ति ने भगवान विष्णु से उनके बेटे के रूप में जन्म लेने के लिए विनती की थी, जिसके बाद विष्णु भगवान ने नर-नारायण के रूप में जन्म लेकर माता मूर्ति की इच्छा पूरी की थी।
वसुधारा…….
इसी रास्ते से आगे पांच किमी का पैदल सफर तय करके पर्यटक वसुधारा तक पहुँचते हैं। वसुधारा से लगभग 400 फीट ऊंचाई से गिरता जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदे पापियों के तन पर नहीं पड़ती। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नजर में नहीं देखा जा सकता।
तप्त कुंड……
बद्रीनाथ धाम के निकट तप्त कुंड स्थित है। बद्रीनाथ धाम आने वाले श्रद्धालु इस कुंड पर जरूर स्नान करते हैं। तप्त कुंड एक ऐसा कुंड है जिसमें साल भर सिर्फ गर्म पानी निकलता है। ऐसा माना जाता है कि तप्त कुंड के पानी में जो भी स्नान करता है उसकी सभी त्वचा बीमारियां दूर हो जाती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तप्त कुंड में जमावड़ा लगा रहता है।
माणा में पारम्परिक वस्तुएं……
माणा गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं जो तीर्थाटन एवं पर्यटन से अपनी आजीविका चलाते हैं। पर्यटक व श्रदालु यहाँ से हाथो से बने ऊनी वस्त्र, गलीचे, कालीन, दन, शॉल, पंखी सहित अन्य पारंपरिक वस्तुएं खरीद कर ले जाते हैं। यहां के लोग बद्रीनाथ धाम के हक-हकूकधारी हैं। मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीनारायण को पहनाया जाने वाला घृत कंबल भी माणा गांव की महिलाएं तैयार करती हैं।