Description
बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह भगवान बद्रीनारायण से संबंधित एक बहुत श्रद्धेय धार्मिक स्थल है जो भगवान बद्रीनाथ को समर्पित है, जो अन्य कोई और देवता नहीं भगवान विष्णु ही है। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ मन्दिर में हिंदू धर्म के देवता विष्णु के एक रूप “बद्रीनारायण” की पूजा होती है। बद्रीनाथ के मंदिर में स्थित मुख्य देवता भगवान बद्रीनाथ 3.3ft की शालीग्राम की शिला प्रतिमा है, जो भगवान विष्णु है, और जो भगवान की सबसे शुभ स्वयं-प्रकट मूर्तियों में से एक है।
विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है । ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं | यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है | प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है | इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है | सोलहवीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवाकर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी | यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था |
शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है | यहाँ भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और पूरा मंदिर प्रकर्ति की गोद में स्थित है | यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मूर्तियां स्थापित है। साथ ही साथ मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है। इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता यह है कि भगवान बद्रीनाथ के दर पर सभी श्रद्धालु की मनचाही इच्छा पूरी होती है। इस जगह के बारे में यह भी कहते है कि इस जगह पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण के रूप में जन्मे थे।
बद्रीनाथ में तथा इसके समीप अन्य भी कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें “ब्रह्म कपाल” (धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयोग होने वाला एक समतल चबूतरा), “शेषनेत्र” (शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड), “चरणपादुका” (भगवान विष्णु के पैरों के निशान), “माता मूर्ति मन्दिर” (बद्रीनाथ भगवान की माता को समर्पित एक मन्दिर), “वेद व्यास गुफा” या “गणेश गुफा” (जहाँ वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था) तथा पौराणिक कथाओं में उल्लिखित एक “साँपों का जोड़ा” शामिल है।बद्रीनाथ से 9 किमी की दूरी पर वसुधारा नामक झरना पड़ता है, जहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। मान्यता है कि इस झरने की बूंदे पापी व्यक्तियों के ऊपर नहीं गिरती हैं। इसके अतिरिक्त निकट ही स्थित सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) नामक स्थान के बारे में कहा जाता है कि यहीं से राजा युधिष्ठिर ने स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
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