उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में खो नदी के तट पर स्थित सिद्धबली मंदिर हनुमान जी महाराज का प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। यह एक पौराणिक मंदिर है, कहा जाता है कि यहां तप साधना करने के बाद एक सिद्ध बाबा को हनुमान जी की सिद्धि प्राप्त हुई थी।
सिद्धबली मंदिर
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में खो नदी के तट पर स्थित सिद्धबली मंदिर हनुमान जी महाराज का प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है। यह एक पौराणिक मंदिर है, कहा जाता है कि यहां तप साधना करने के बाद एक सिद्ध बाबा को हनुमान जी की सिद्धि प्राप्त हुई थी। सिद्ध बाबा ने यहां बजरंगबली की विशाल प्रतिमा का निर्माण कराया, जिससे यहां का नाम सिद्धबली हो गया।
कोटद्वार शहर से 3 किमी की दूरी पर पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह मंदिर स्थित है। कोटद्वार शहर को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी माना जाता है। प्राचीन समय में यह एक छोटा सा मंदिर था किंतु पौराणिकता और शक्ति की महत्वता के कारण श्रद्धालुओं ने मंदिर को भव्यता प्रदान कर दी है, सिद्धबली मंदिर पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध देवस्थल भी है।
हनुमान जी महाराज के दर्शन करने के लिए 150 से अधिक सीढ़ियों का सफर तय करने के बाद भक्त मंदिर तक पहुंचते हैं। सिद्धबली मंदिर के बरामदे का नजारा बहुत आकर्षक है, यहां से आप एक छोटी नदी को प्रवाहित होते हुए देख सकते हैं। सिद्धबली मंदिर हिंदू धर्म से संबंधित मंदिर है लेकिन यहां सिख, मुस्लिम सभी धर्मों के लोग मनौतियां मांगने आते हैं।
मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु यहां भंडारे का भी आयोजन कराते हैं। सिद्धबली मंदिर में मंगलवार और रविवार के दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है। सिद्धबली मंदिर के द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा है, इसलिए आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिद्धबली बाबा मंदिर में 2025 तक के लिए बुकिंग हो चुकी है। यहां प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं के द्वारा मेले का आयोजन होता है जिसमें सभी धर्म के लोग भाग लेते हैं। यदि आपकी भी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो एक बार सिद्धबली मंदिर की यात्रा का ख्याल मन में जरूर लाएं।
कैसे पहुंचे : कोटद्वार में रेलवे स्टेशन व बस अड्डा है, यहां से आप बस, टैक्सी तथा ऑटो से सिद्धबली मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
दुर्गा देवी मंदिर……
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले की कोटद्वार शहर से 11 किमी की दूरी पर स्थित दुर्गा देवी मंदिर एक प्राचीन एवं लोकप्रिय मंदिर है। दुर्गा देवी मंदिर पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है तथा प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक माना जाता है। आधुनिक मंदिर सड़क के पास स्थित है परंतु प्राचीन मंदिर थोड़ा नीचे 12 फिट लंबी गुफा में स्थित है, जिसमें एक शिवलिंग स्थापित है।
इस गुफा में मां दुर्गा के दर्शन के लिए भक्तों को लेट कर जाना होता है। इस मंदिर में देवी मां के चट्टानों से उभरी एक प्रतिमा है और अंदर एक ज्योति है जो कि निरंतर जलती रहती है। स्थानीय निवासी इस मंदिर में बड़ी श्रद्धा भक्ति से देवी की पूजा करते हैं, उनका मानना है कि मां दुर्गा जीवन में आने वाले हर संकट से उन्हें बचाती है।
चैत्रीय व शारदीय नवरात्र में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, इस दौरान यहां कई श्रद्धालु भंडारे का आयोजन करते हैं। बहुत दूर-दूर से लोग देवी मां का आशीर्वाद देने आते हैं, भक्तों का मानना है कि देवी मां अपने सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती है। दुर्गा देवी मंदिर के आसपास हरे-भरे जंगल हैं तथा नीचे एक चोटी नदी बहती है, जहां पर जाके मन को शांति मिलती है। श्रावण मास के सोमवार और शिवरात्रि को बड़ी संख्या में यहां भक्त शिव जी का जलाभिषेक करने आते हैं। कोटद्वार में खो नदी के किनारे बसा पवित्र स्थान दुर्गा देवी मंदिर के दर्शन के लिए अपने प्रियजनों के साथ एक बार जरूर जाएं।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर……
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के लैंसडाउन क्षेत्र में स्थित ताड़केश्वर महादेव मंदिर भगवान शिवजी को समर्पित है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर बलूत और देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ है तथा यहां कई पानी है छोटे-छोटे झरने बहते हैं। ताड़केश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करने हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं, मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। हर साल यहां महाशिवरात्रि का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है, इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मंदिर परिसर में एक कुंड है, मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी के द्वारा खोदा गया था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव ने यहां विश्राम किया था। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज़ किरणें पड़ रही थी। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात (7) देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुई और भगवान शिव को छाया प्रदान की। ताड़केश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में आज भी वे सात ताड़ के पेड़ विराजमान हैं, जिन्हें देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर में सभी भक्त मनोकामना लेकर आते हैं और भोलेनाथ अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब किसी की मनोकामना पूरी होती है तो वह मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। मंदिर प्रांगण में लगी हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण है कि भोलेनाथ की शरण में आने वाले भक्त कभी निराश नहीं लौटते हैं, सभी का कल्याण होता है।
महाबगढ़ मंदिर……..
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यम्केश्वर ब्लॉक में स्थित महाबगढ़ मंदिर कोटद्वार से 65 किलोमीटर की दूरी पर है। महाबगढ़ पर्वत श्रृंखलाओं में कई ऋषि मुनियों जैसे मृकुंड, मार्कण्डेय, कश्यप, और कण्व ऋषि जैसे तपस्वियों की तपोस्थली रही है, जहां दुर्वासा ऋषि भ्रमण करते थे। इसका वर्णन विष्णु पुराण में मिलता है। महाबगढ़ मंदिर के अंतर्गत पौराणिक पर्वत श्रृंखला और अनेकों ऋषि मुनियों की ध्यान तपोस्थली, आश्रमों और सिद्धपीठों का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में जैसे विष्णु पुराण, महाभारत काल का भीष्म पर्व, कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि पुराणों में वर्णित है, जिसमें मणिकूट पर्वत एवं हिमकूट पर्वत उल्लेखनीय है।
मणिकूट पर्वत में नीलकंठ महादेव, यम्केश्वर महादेव, मां भुवनेश्वरी देवी आदि देव स्थल हैं। दूसरी ओर हिमकूट पर्वत श्रृंखलाओं से जुड़े महबगढ़ शिवालय, कोटेश्वर महादेव मंदिर स्थित हैं, बता दें कि इस इलाके में भारत देश के नाम की कहानी छिपी है। महबगढ़ शिवालय पर्वतराज कैलाश के ठीक सामने विराजमान है। महाबगढ़ मंदिर पहुंचते ही सड़क के किनारे आपको छोटी-छोटी चाय नाश्ते की दुकान मिल जाती है, इस जगह को कमेडी खाल के नाम से जाना जाता है। यहां से महाबगढ़ मंदिर पहुंचने के लिए 700 मीटर चढाई का पैदल रास्ता है।
महाबगढ़ मंदिर से आप कोटद्वार, हरिद्वार, गंगानदी, ऋषिकेश, देहरादून, लैंसडौन, मसूरी सहित हिमालय की सभी प्रमुख चोटियां बन्दरपूँछ, गंगोत्री, केदारनाथ, चौखंबा, नंदा देवी, त्रिशूल और पंचाचूली शिखर दिखाई देते हैं। महाबगढ़ एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहां हज़ारो श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि महाबगढ़ मंदिर की छाया हर की पेड़ी में पडती है, जिसे देखने के लिए लोग अक्सर यहां आते हैं। महाबगढ़ मंदिर से सूर्योदय और सूर्यास्त के अलौकिक नज़ारे दिखाई देते हैं।
भैरव गढ़ी मंदिर…….
भैरव गढ़ी मंदिर कालभैरव का सुप्रसिद्ध धाम है। भगवान शिव के 15 अवतारों में एक नाम भैरवगढ़ी का आता है। यह मंदिर कीर्तिखाल की पहाड़ी पर मौजूद है, यहां कालनाथ भैरव की पूजा नियमित रूप से की जाती है। कोटद्वार से 38 किमी की दूरी पर स्थित भैरवगढ़ी को गढ़वाल मंडल का रक्षक माना जाता है। कालनाथ भैरव को सभी चीजें काली पसंद होती है यही कारण है कि कालनाथ भैरव के लिए मंडवे के आटे का रोट प्रसाद के रूप में बनाते हैं।
भैरव के साधक और पुजारी आज भी भैरवगढ़ी चोटी पर जाकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर हर किसी की मनोकामना पूरी होती है। यहां भक्तों के द्वारा चांदी के छत्र चढ़ाए जाते हैं। भैरवगढ़ी में स्थित मंदिर भैरव की गुमटी पर बना है, जिसके बाहर बायें हिस्से में शक्ति कुंड है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
चोटी पर होने के कारण बर्फ से लदी पहाड़ियां और हरियाली पर्यटकों को शांति का अनुभव कराती हैं। इस मंदिर में नवविवाहित जोड़े भी मनौतियां मांगने पहुंचते हैं। भैरवगढ़ी पहुंचते ही रोड के किनारे छोटी-छोटी दुकाने हैं, जहां पर पूजा सामग्री और चाय नाश्ते की दुकानें हैं। भैरवगढ़ी मंदिर पहुँचने के लिए लगभग 2.5 किमी चढाई का पैदल रास्ता है। ऐसी मान्यता है कि भैरवगढ़ी मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।